Showing posts with label Know Yourself. Show all posts
Showing posts with label Know Yourself. Show all posts

20 Feb 2010

कुछ भी समझने के लिए आपको उसके साथ जीना होगा



कुछ भी जानने समझने के लिए आपको उसके साथ जीना होगा, उसका अवलोकन करना ही होगा, आपको उसके सभी पहलू, उसकी सारी अंर्तवस्तु, उसकी प्रकृति, उसकी संरचना, उसकी गतिविधियां जाननी होंगी। क्या आपने कभी अपने ही साथ जीने की कोशिश की है? यदि कि है तो आपने यह देखना भी शुरू किया होगा कि आप एक स्थिर अवस्था में ही नहीं रहते, मानव जीवन एक ताजा और जिन्दा चीज है। और जिन्दा चीज के साथ रहने के लिए आपका मन भी उसी तरह ही ताजा और जिन्दा होना चाहिये। मन कभी भी जिन्दा नहीं रह सकता जब तक कि विचारों, फैसलों और मूल्यों में जकड़ा हुआ हो। अपने मन, दिलदिमाग की गतिविधियों, अपने सम्पूर्ण अस्तित्व के अवलोकन की दिशा में अनिवार्य रूप से आपके पास एक मुक्त मन होना चाहिये। वो मन नहीं - जो सहमत या असहमत होता हो, कोई पक्ष ले लेता हो और उन पर टीका टिप्पणियां या वाद विवाद करता हो, मात्र शब्दों के विवाद में ही उलझा रहता हो। बल्कि एक ऐसा मन हो जिसका ध्येय समझ-बूझ का अनुसरण करना हो क्योंकि हम में से अधिकतर लोग यह जानते ही नहीं कि हम अपने ही अस्तित्व की ओर कैसे देखें, कैसे उसे सुनें.... तो हम यह उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि हम किसी बहती नदी के सौन्दर्य को देख पायेंगे या पेड़ों के बीच से गुजरती हवा को सुन पायेंगे।
जब हम आलोचना करते हैं या किसी चीज के बारे में किसी तरह के फैसले करने लगते हैं तो हम उसे स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते, ना ही उस समय जब हमारा दिल दिमाग बिना रूके बक-बक में ही लगा रहता है। तब हम ’‘जो है’’ उसका वास्तविक अवलोकन नहीं कर पाते, हम अपने बारे में अपने पूर्वाभास/पूर्वानुमान ही देख पाते हैं जो अपने बारे में स्वयं हमने ही बनाये हैं। हममें से प्रत्येक ने अपने बारे में एक छवि बना रखी है कि हम क्या सोचते हैं या हमें क्या होना है और यह छवि या चित्र ही हमें हम जो यथार्थ में हैं, हमारी वास्तविकता के दर्शनों से परे रखता है, बचाता है। किसी चीज को सहज रूप से जैसी वो है वैसी ही देखना, यह संसार में सर्वाधिक कठिन चीजों में से एक है। क्योंकि हमारे दिलदिमाग बहुत ही जटिल हैं, हमने सहजता का गुण खो दिया है। यहां मेरा आशय कपड़ों और भोजन, केवल एक लंगोट पहनकर काम चलाने या उपवास व्रतों का रिकार्ड तोड़ने वाले अपरिपक्व कार्यों और मूर्खताओं से नहीं है जिन्हें तथाकथित संतो ने सम्पन्न किया है, मेरा आशय है उस सहजता से जो किसी चीज को सीधे-सीधे वैसा ही देख पाती है बिना किसी भय के। वो सरलता जो हमारी ओर उस तरह देख सके जैसे कि वास्तव में हम हैं बिना किसी विक्षेप के - जब हम झूठे बोलें, तो झूठ कहे... उसे ढंके छुपाये नहीं ना ही उससे दूर भाग जाये। अपने को समझने के अनुक्रम में हमें अत्यंत विनम्रता की आवश्यकता भी है। जब आप यह कहते हुए शुरूआत करते हैं कि ‘मैं खुद को जानता हूं‘ आप अपने बारे में सीखने समझने को तुरन्त ही बन्द कर चुके होते हैं। या यदि आप कहते हैं कि ‘‘मेरे अपने बारे में जानने समझने लायक कुछ नहीं है क्योंकि मैं केवल स्मृतियों,संकल्पनाओं, अनुभवों और परंपराओं का एक गट्ठर मात्र हूं’’ तो भी आप अपने को सीखने समझने की प्रक्रिया को ठप्प कर चुके होते हैं।
उस क्षण जब आप कुछ उपलब्ध करते हैं तो आप अपनी सहजता, सरलता और विनम्रता के गुणों पर विराम लगा देते हैं। उस क्षण जब आप किसी निर्णय पर पहुंचते हैं या ज्ञान से जॉंचपरख की शुरूआत करते हैं तो आप खत्म हो चुके होते हैं, उसके बाद आप हर जिन्दा चीज का पुरानी चीजों के सन्दर्भ अनुवाद करना शुरू कर देते हैं।
जबकि यदि आप पैरों पर खड़े न हों, आपकी जमीन पर पकड़ ना हो, यदि कोई निश्चितता ना हो, कोई उपलब्धि ना हो तो देखने और उपलब्ध करने की आजादी होती है। और जब आप आजाद होकर देखना शुरू करते हैं तो जो भी होता है हमेशा नया होता है। आश्वस्त या आत्मविश्वास से भरा हुआ आदमी, एक मृत मनुष्य होता है।

25 Jan 2010

ज्ञात से मुक्ति



सब तरह से मुक्त होना है, ज्ञात से मुक्ति, मन की वह अवस्था जो कहती है ‘‘मैं नहीं जानता’’ और जो उत्तर की राह भी नहीं तकती। ऐसा मन जो पूर्णतः किसी तलाश में नहीं होता ना ही ऐसी आशा करता है, ऐसे मन की अवस्था में आप कह सकते हैं कि ‘‘मैं समझा’’। केवल यही वह अवस्था होती है जब मन मुक्त होता है, इस अवस्था से आप उन चीजों को भी एक अलग ही तरह से देख सकते जिन्हें आप जानते हैं। ज्ञात से आप अज्ञात को नहीं देख सकते लेकिन जब कभी एक बार आप मन की उस अवस्था को समझ जाते हैं जो मुक्त है - जो मन कहता है कि ‘’’मैं नहीं जानता’’ और अजाना ही रहता है, इसलिए वह अबोध है.... उस अवस्था से एक नागरिक, एक विवाहित या आप जो भी हों वास्तविक कर्म करना शुरू करते हैं। तब आप जो भी करते हैं उसमें एक सुसंगतता होती है, जीवन में महत्व होता है।
लेकिन हम ज्ञात की सीमा में ही रहते हैं उसकी सभी विषमताओं के साथ, जीतोड़ प्रयासों, विवादों और पीड़ाओं के साथ और वहां से हम तलाश करते हैं उसकी, जो अज्ञात है, इसलिए वास्तव में हम मुक्ति नहीं चाह रहे हैं। हम जो चाहते हैं, वह है - जो है उसमें ही निरंतरता, वही पुरानी चीजों को और खींचना या लम्बाना... जो ज्ञात ही हैं।

1 Jan 2010

सम्पूर्ण प्रयोगशाला आपके भीतर ही है



जबकि सम्पूर्ण प्रयोगशाला आपके भीतर ही है तो आप किसी अन्य आदमी का अध्ययन क्यों करना चाहते हैं? अपने आप का अध्ययन करें, आप ही सारी मानवता हैं, वृहत दूरूहपन द्वंद्वात्मकता, अत्यंतिक संवेदना आप ही हैं। आप इस बात का अध्ययन क्यों करना चाहते हैं कि कोई अन्य आदमी के बारे में क्या कहता है। और आप ही तो हैं जो अन्य आदमी से संबंधित हैं, यही तो समाज है। आपने ही तो यह भयावह, कुरूप दुनिया गढ़ी है जो अब पूरी तरह अर्थहीन होती जा रही है, यही तो वजह है कि दुनियां भर के युवा विद्रोही हो रहे हैं। मेरे लिये यह एक अर्थहीन जीवन है। आदमी ने जो यह दुनियां गढ़ी है उसकी अपनी ही मांगों का निक्षेप या फल है, उसकी अपनी ”तुरन्त चाहिये” तात्कालिक प्राथमिकताओं, आदतों, महत्वाकांक्षाओं, लाभ और ईष्र्या का निचोड़ है। आप सोचते हैं कि आप मानव के संबंध में सभी पुस्तकों का अध्ययन कर लेंगे और समाज में जाएंगें तो आप अपने आपको समझ सकेंगे। लेकिन क्या यह ज्यादा सरल और सहज नहीं है कि आप अपने से ही शुरूआत करें?

30 Dec 2009

अन्य लोगों से अपनी तुलना करना छोड़ें



जब मैं अपनी तुलना अन्य लोगों से नहीं करता तब मैं समझ सकता हूं कि ”मैं क्या हूं?“ जीवन भर, बचपने से.. स्कूली उम्र से लेकर हमारे मरने तक, हमें सिखाया जाता है कि हम अपनी तुलना अन्य लोगों से करें, जबकि जब भी मैं किसी से अपनी तुलना करता हूं तो मैं अपने आप को ही नष्ट कर रहा होता हूं। स्कूल में, एक साधारण स्कूल में भी जहां कई लड़के होते हैं उनमें जो कक्षा में माॅनीटर है... वह असल में क्या है? आप लड़के को नष्ट कर रहे हैं। यही सब हम जिन्दगी भर करते हैं। तो अब... क्या हम बिना तुलना किये जी सकते हैं - बिना अन्य किसी से भी तुलना किये? इसका मतलब है अब कुछ भी ऊंचा या नीचा नहीं होगा, अब ऐसा नहीं होगा कि आपकी नजर में कोई एक श्रेष्ठ हो उच्च हो और कोई एक, हीन और निकृष्ट। आप वास्तव में वही हैं, जो कि आप हैं और ”जो आप हैं“ उसे जानने के लिए यह तुलना करने का तरीका आपको छोड़ना होगा, यह प्रक्रिया अनिवार्यतः समाप्त करनी होगी। यदि मैं हमेशा अपने को किसी संत या किसी शिक्षक या किसी बिजनेसमेन, लेखक, कवि या अन्य लोगों से तुलना में रखूं, तो मेरे साथ क्या होगा? मैं क्या कर रहा हूं? मैं इनसे तुलना कर रहा हूं ... कुछ पाने के अनुक्रम में, किसी उपलब्धि की दिशा में या कुछ होने के चक्कर में और यदि मैं किसी से अपनी तुलना नहीं करता तो... तब मैं यह जानना शुरू करता हूं कि वास्तव में ”मैं क्या हूं“। मैं क्या हूं, यह जानने की शुरूआत अधिक मोहक है, ज्यादा रूचिकर है और अपने को जानना, सभी मूर्खतापूर्ण बेवकूफी भरी तुलनाओं के पार ले जाता है।

29 Dec 2009

हमारा ”स्व“ या “आत्म” कई खण्डों वाली पुस्तक है




अपने आप को जानने-समझने के लिए धैर्य, सहनशीलता, जागरूकता चाहिये क्योंकि हमारा स्व या आत्म अनेक खण्डों वाले महाग्रंथ के समान है जो केवल एक ही दिन में नहीं पढ़ा जा सकता लेकिन यदि आप पढ़ना शुरू करें तो आपको इसका प्रत्येक शब्द, प्रत्येक वाक्य, प्रत्येक पैराग्राफ अपरिहार्य रूप से पढ़ना चाहिये क्योंकि इसके प्रत्येक शब्द, वाक्य और प्रत्येक पैराग्राफ में आपकी सम्पूर्णता के बारे में इशारे हैं। इसकी शुरूआत ही इसका अंत भी है। यदि आप जानते हैं कि कैसे पढ़ा जाता है तो आप परमज्ञान, परम समझदारी पा सकते हैं।

14 Nov 2009



आप अपनी जिन्दगी को ही एक पर्यवेक्षक के दृष्टिकोण से देखते हैं, किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में जो आपकी जिन्दगी से अलग है। इस प्रकार आप खुद को दो हिस्सों - पर्यवेक्षक यानि देखने वाले और पर्यवेक्षण यानि देखे जाने वाले के बीच बांट लेते हैं। यूं अपने आपको दो हिस्सों में बांट लेना, आपके सभी द्वंद्वों, संघर्षों, दुखों, भयों, निराशाओं की जड़ बन जाता है।
इसी प्रकार आपकी ये बांटने की प्रवृत्ति इंसान इंसान को, राष्ट्रों, धर्मों, समाजिक बंटवारों का कारण बनती है - और जहां भी बंटवारा होगा, वहां संघर्ष भी होगा। यह नियम है, यह कारण है, तर्क है। एक तरफ पाकिस्तान एक तरफ भारत यूं तो ये संघर्ष कभी खत्म नहीं होगा, बाह्रम्ण और अ-ब्राम्ह्रण... इस बंटवारे में नफरत पलती है। इस प्रकार समस्त संघर्षों के साथ बाहरी तौर पर बंटवारे उसी प्रकार के हैं जिस प्रकार आप आन्तरिक रूप से अपने आपको पर्यवेक्षक ओर पर्यवेक्षण में बांट लेते हैं। क्या आप इस बात को समझ रहे हैं? यदि आप इस बात को नहीं समझ रहे हैं तो आप आगे नहीं जा सकते। एक ऐसा मन जो सतत संघर्ष वैषम्य में हो वो वैसे ही एक सताया हुआ मन होता है, संत्रास झेलता हुआ मन होता है, मुड़ा तुड़ा और विक्षिप्त मन होता है वो वैसा ही होता है जैसे कि वर्तमान में हम हैं।

13 Nov 2009



क्या हमारी रोजमर्रा की जिन्दगी में कोई ऐसा तरीका हो सकता है जिसमें हम हर तरह के मनोवैज्ञानिक नियन्त्रण को मात्र अपने होने भर पर ही समाप्त कर दें? क्योंकि नियंत्रण का अर्थ है कोशिश - प्रयास जिसका मतलब है हमारा स्वयं को ही ‘‘नियंत्रक’’ और ‘‘नियंत्रित’’ के बीच में बांट देना। मैं गुस्से में हूं तो मुझे गुस्से पर काबू करना चाहिए, मैं सिगरेट पीता हूं तो मुझे सिगरेट नहीं पीनी चाहिए। हम कुछ और ही कहते हैं जो कि हमारे द्वारा ही गलत समझा जाता है और हमारे ही द्वारा शायद अस्वीकार भी किया जाता है और ये चीजें एकसाथ चलती हैं क्योंकि यह एक सामान्य सी उक्ति हो गया है कि सारी जिन्दगी एक निंयत्रण है- यदि आप नियंत्रण नहीं करते हैं तो आप अपने आप को ही बहुत छूट दे रहे हैं, आप असंवेदनशील हैं, आपके होने का कोई मतलब नहीं है, इसलिए आपको अपने पर काबू करना चाहिए। धर्म, दर्शन, शिक्षक, आपका परिवार, माँ बाप ये सब आपको प्रेरित करते हैं कि आपको अपने पर निंयत्रण करना चाहिए। हम कभी भी ये प्रश्न नहीं करते - कि ये नियंत्रक कौन है?   ................. आप खुद ही तो न।

20 Jul 2009

सजगता द्वारा मैं खुद को देखना शुरू करता हूं, जैसा कि वास्तविकता में मैं हूं, अपने स्वयं का पूर्णत्व। प्रत्येक क्षण की गति को देखते हुए उसके सभी विचारों, उसके अहसासों, उसकी प्रतिक्रियाओं, अचेतन औ चेतन भी मन .... निरंतर अपनी गतिविधियों का अर्थ महत्व खोजता रहता हैं। यदि मेरी समझ मात्र कुछ चीजों का जोड़ है, तो यह जोड़ एक शर्त बन जाता है जो मेरी आगे की समझ को रोकती है। तो क्या मस्तिष्क स्वयं को बिना कुछ जोड़े घटाये जैसा है वैसा का वैसा ही देख सकता है?

एक स्पष्टता जो किसी कारण विशेष से नहीं होती - जब मन और शरीर की प्रत्येक क्रिया के बारे में अंर्तमुखी सजगता रहती है, जब आप अपने विचारों, खुले और दबे ढंके हुए सभी अहसासों, चेतन और अवचेतन के प्रति सजगता रखते हैं तब इस सजगता से एक स्पष्टता आती है जो बिना किसी कारण विशेष के होती है। जिसे बुद्धि के साथ एक ही श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। इस स्पष्टता के बिना आप जो करें, आप स्वर्ग, सारी धरती और कई अतल गहराईया छान लें लेकिन आप बिलकुल ही नहीं जान सकते कि सच क्या है?