Showing posts with label वि‍चार Thought अज्ञात Unknown. Show all posts
Showing posts with label वि‍चार Thought अज्ञात Unknown. Show all posts

13 Feb 2010

विचार, स्मृति की तरह हो तो उसे नकारना अत्यावश्यक है।


कोई कैसे नकार सकता है? क्या कोई ज्ञात को नकार सकता है, किसी महान नाटकीय घटना में नहीं बल्कि छोटे-छोटे वाकयों में? क्या मैं शेव करते समय स्विटजरलैंड में बिताये हसीन वक्त की यादों को नकार सकता हूं? क्या कोई खुशनुमा वक्त की यादों को नकार सकता है? क्या कोई किसी बात के प्रति जागरूक हो सकता है और नकार सकता है? यह नाटकीय नहीं है, यह चमत्कारपूर्ण या असाधारण नहीं है, लेकिन कोई भी इस बारे में नहीं जानता।
फिर भी अनवरत इन छोटी-छोटी चीजों को नकारना, छोटी छोटी सफाईयों से, छोटे छोटे दागों को घिसने और पोंछने से क्या एक बहुत ही बड़ी सफाई नहीं हो जायेगी - यह बहुत ही आवश्यक है, अपरिहार्य है। यह बहुत ही जरूरी है कि विचार को याद के रूप में नकारा जाये वो चाहे खुशनुमा हो या दर्दनाक। दिन भर प्रत्येक मिनट जब भी विचार याद की तरह आये उसे निकारना। किसी भी व्यक्ति को ऐसा किसी उद्देश्य से नहीं करना है, ना ही अज्ञात की किसी असाधारण अपूर्व अवस्था में उतरने के अनुसरण स्वरूप। आप ऋषि वैली में रहते हैं और मुम्बई और रोम के बारे में सोचते हैं। यह एक संघर्ष एवं वैमनस्य पदा करता है, और संघर्ष मस्तिष्क को कुंद बनाता है, खंडि‍त चीज बनाता है। क्या आप इस चीज को देखते हैं और इसे पोंछकर हटा सकते हैं? क्या आप यह सफाई जारी रखते हैं क्योंकि आप अज्ञात में प्रवेश करना चाहते हैं? इससे आप अज्ञात को नहीं जान सकेंगे क्योंकि जिस क्षण आप इसे अज्ञात के रूप में पहचानते हैं वह वापस ज्ञात की परिधि में आ जाता है। पहचानने या मान्यता देने की प्रक्रिया, ज्ञात में निरन्तर रहने कि प्रक्रिया है। जबकि हम नहीं जानते कि अज्ञात क्या है हम यही एक चीज कर सकते हैं, हम विचारों कों पोंछते जायें जैसे ही यह उगें। आप फूल देखें, उसे महसूस करें, सौन्दर्य देखें, उसका प्रभाव उसकी असाधारण दीप्ति देखें। फिर आप अपने उस कमरें में चले आये जिसमें आप रहते हैं, जो कि उचित अनुपात में नहीं बना है, जो कि कुरूप है। आप कमरे में रहते हैं लेकिन आपके पास कुछ सौन्दर्य बोध होता है और आप फूल के बारे में सोचना शुरू कर देते हैं और विचार की पकड़ में आ जाते हैं, तो जैसे ही विचार उगे, आपको दिखे उसे पोंछ दें, हटा दें। तो अब जिस गहराई से यह पोंछना या सफाईकर्म या हटाना करते हैं, आप जिस गहराई से फूल, अपनी पत्नी, अपने देवता, अपने आर्थिक जीवन को नकारते हैं यह देखना है? आपको अपनी पत्नी, बच्चों और कुरूप दानवीय समाज के साथ जीना ही है। आप जीवन से पलायन नहीं कर सकते। लेकिन जब अब पूर्णतः नकारना शुरू करते हैं तो विचार, शोक, खुशी से आपके रिश्ते भी अलग होंगे, तो यहां पर अपरिहार्य अत्यावश्यक रूप से पूर्ण रूपेण नकारना होना चाहिये, आंशिक रूप से नकारना नहीं चलेगा, उन चीजों को बचाना भी नहीं चलेगा जिन्हें आप चाहते हैं ओर केवल उन चीजों को नकारने से भी नहीं चलेगा जो आप नहीं चाहते।