केवल एक ही बात मायने रखती है वो है -भलाई, प्रेम, बुद्धिमानी इत्यादि अमल में आये, कर्म भी हो। क्या भलाई वैयक्तिक और सामूहिक होती है?, क्या प्रेम वैयक्तिक और अवैयक्तिक होता है?, क्या बुद्धिमानी मेरी या तुम्हारी या और किसी की होती है? यदि यह मेरी या तुम्हारी है तो यह बुद्धिमानी या प्रेम या भलाई नहीं। यदि भलाई वैयक्तिक और सामूहिक रूप से किसी विशेष प्राथमिकता या निर्णय की तरह हो तो वह भलाई नहीं रह जायेगा। भलाई वैयक्तिक्ता या सामूहिकता के नाम पर घर के पिछवाड़े में फेंक देने जैसी चीज नहीं है, भलाई, वैयक्तिता या सामूहिकता, इन दोनों से स्वतंत्र रहकर फूलती-फलती है।
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8 Jan 2010
24 Dec 2009
कर्म क्या है ?
वास्तव में इस तरह की कोई चीज नहीं, जिसे कि हम कर्म कहते हैं। कारण और प्रभाव दो अलग या भिन्न चीजें नहीं हैं। आज का प्रभाव ही कल का कारण है। ऐसा कोई अलग-थलग पड़ा हुआ ”कारण जैसा कुछ“ नहीं होता जो प्रभाव पैदा करे, कारण और प्रभाव अन्र्तसंबंधित हैं। ”कारण और प्रभाव के नियम“ जैसी कोई चीज वास्तव में नहीं होती, जिसका मतलब यह भी है कि ऐसी भी कोई चीज नहीं होती जिसे कर्म कहें। हमारे लिये, कर्म का मतलब है एक परिणाम जिसके पीछे पहले कोई कारण रहा हो, पर प्रभाव और कारण के बीच के अन्तराल में जो होता है वो है समय। इस समय अन्तराल में अनन्त प्रकार के भारी बदलाव होते रहते हैं जिससे हमें हर बार एक सा ही प्रभाव प्राप्त नहीं होता। और प्रभाव निरंतर नये कारण पैदा करते रहते हैं जो कि मात्र प्रभाव का परिणाम ही नहीं होते। अतः यह ना कहें कि मैं कर्म में विश्वास नहीं करता, हमारा यह सब कहने का यह दृष्टिकोण नहीं है। कर्म का आशय है, बहुत ही सहज रूप से, एक ऐसा कृत्य जिससे एक परिणाम भी जुड़ा हुआ है, और यह परिणाम पुनश्च एक कारण की तरह भी है। यदि आम की गुठली को देखें उसमें आम का वृक्ष होना निहित है लेकिन मानव मन के साथ ऐसा ही कुछ नहीं है। मानव मन में अपने आप में रूपान्तरण और तत्काल समझबूझ की सामथ्र्य उसे किसी भी कारण से हमेशा अलग रख सकती है।
28 Nov 2009
”जेकृष्णमूर्ति इन हिन्दी“ ब्लॉग, वेबदुनिया के विचारमंथन, ब्लॉग चर्चा में
रवीन्द्र व्यास जी ने इस बार अपनी ब्लॉग चर्चा में इस ब्लॉग सम्बन्धित सूचना को अपने पाठकों तक पहुंचाने का विषय बनाया है। कसी हुई भाषा में एक पृष्ठ की पाठ्य सामग्री में ही उन्होंने जे कृष्णमूर्ति के धारदार दर्शन का परिचय प्रदर्शित किया है। व्यास जी के इस प्रयास को साधुवाद, आभार, धन्यवाद! वेबदुनिया के विचारमंथन, ब्लॉग चर्चा का ये लिंक है
- हिन्दी भाषा में उनकी अंग्रेजी पुस्तकों के अनुवाद तो मिलते हैं पर इन्टरनेट पर कोई वेबसाईट या ब्लॉग नहीं जो जे कृष्णमूर्ति द्वारा कहे गये वांग्मय का परिचय हिन्दी में देता हो वो भी सरल सहज रूप में, ”जेकृष्णमूर्ति इन हिन्दी“ यह प्रथम प्रयास है।
- ”जेकृष्णमूर्ति इन हिन्दी“ यह ब्लॉग उनके ही एक प्रेमी द्वारा अंग्रेजी से हिन्दी में सरल अनुवाद कर जीवन्त अस्ित्तत्व में है, किसी अनुवादित पुस्तक के अंशों से नहीं ।
- इस ब्लॉग पर टिप्पणियाँ इसलिए निष्क्रय हैं क्योंकि ये इस ब्लॉग का ध्येय नहीं ।
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