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19 Jan 2010

अकेला अबोधपन ही शौकिया, चावपूर्ण और मन की मौज-सा हो सकता है



केवल अबोधता, निर्दोषता ही चावपूर्ण और शौकिया हो सकती है। निर्दोषता के पास ही दुख नहीं होता, ना रोग-बीमारी हालांकि उसके पास इनके हजारों अनुभव होते हैं। अनुभव मन को भ्रष्ट नहीं करते लेकिन वो जो पीछे छोड़ जाते हैं, अवशिष्ट, खरोंचे और यादें, इनसे मन भ्रष्ट होता है। यह सब एक के ऊपर एक जमते जाते हैं और तब शुरू होता है दुख। यह दुख, समय होता है। जहां समय हो, वहां निर्दोषता सरलता नहीं होती। चाव, शौक से दुख पैदा नहीं हो सकता। दुख अनुभव है, अनुभव प्रतिदिन के जीवन का, पीड़ा से भरे जीवन और क्षणिक सुखों के अनुभव, भयों और निश्चितताओं के अनुभव। आप  अनुभवों से पलायन नहीं कर सकते, उनसे बच नहीं सकते लेकिन इनकी जड़ें आपके मन में गहरे घर कर जायें इसकी आवश्यकता भी नहीं है। इनकी जड़ें ही अन्य समस्याओं, वैषम्यताओं द्वंद्वों और निरंतर संघर्षों को पालती-पोसती हैं। इनसे बाहर आने का कोई उपाय नहीं है सिवा इसके कि आप रोज-ब-रोज, कल-आज-कल की की तरह मरते जायें।  केवल और अकेला स्पष्ट मन ही शौक और चाव से भरा हो सकता है। बिना शौक और चाव के आप पतों पर जमी ओस और पानी पर पड़ती सूर्य की किरणों को नहीं देख सकते। मन की मौज, शौक और चाव के बिना प्रेम भी नहीं होता।

22 Oct 2009

प्रेम की सुगंध ही उसका परिचय है

जब आपका दिल, दिमाग की चीजों चालाकियों से नहीं भरा होता, तब प्रेम से भरा होता है। एकमात्र और अकेला प्रेम ही है जो निवर्तमान दुनियां के पागलपन, उसकी भ्रष्टता को खत्म कर सकता है। प्रेम के सिवा, कोई भी संकल्पना, सिद्धांत, वाद दुनियां को नहीं बदल सकते। आप तभी प्रेम कर सकते हैं जब आप आधिपत्य करने की कोशिश नहीं करते, ईष्र्यालु या लालची नहीं होते। जब आप में लोगों के प्रति आदर होता है, करूणा होती है, हार्दिक स्नेह उमड़ता है तब आप प्रेम में होते हैं। जब आप अपनी पत्नि, प्रेमिका, अपने बच्चों, अपने पड़ोसी, अपने बद्किस्मत सेवकों के बारे में सद्भावपूर्ण ख्यालों में होते हैं तब आप प्रेम में होते हैं। प्रेम ऐसी चीज नहीं जिसके बारे में सोचा विचारा जाये, कृत्रिम रूप से उसे उगाया जाये, प्रेम ऐसी चीज नहीं जिसका अभ्यास कर कर के सीखा जाये। प्रेम, भाईचारा आदि सीखना दिमागी बाते हैं प्रेम कतई नहीं। जब प्रेम, भाईचारा, विश्वबंधुत्व, दया, करूणा और समर्पण सीखना पूर्णतः रूक जाता है, बनावटीपन ठहर जाता है तब असली प्रेम प्रकट होता है। प्रेम की सुगंध ही उसका परिचय होता है।

रेगिस्तान की तरह शुष्क आज के सभ्य विश्व में जहाँ भौतिक सुख और इच्छाएं ही प्रमुख हो गये हैं प्रेम नहीं बचा है। लेकिन फिर भी प्रेम के बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं। आपके पास प्यार होगा ही नहीं जब तक सुन्दरता न हो। सुन्दरता वह नहीं जो आप बाहर देखते हैं - कोई सुन्दर वृक्ष, एक सुन्दर तस्वीर, एक भव्य सुन्दर इमारत या एक सुन्दर स्त्री बल्कि सुन्दरता आपका वह अन्तःकरण है जो आपकी आंख बाहर को प्रक्षेपित करती है। जब आपके दिल दिमाग जानते हैं कि प्रेम क्या है केवल तब ही सुन्दरता का अहसास हो सकता है। बिना प्रेम और सौन्दर्य बोध के किसी प्रकार की सच्ची नैतिकता का अस्तित्व ही नहीं हो सकता। आप और हम सभी ये अच्छी तरह जानते हैं कि बिना प्रेम के आप कुछ भी करें, समाज सुधार करें, भूखों को खिलायें आप और और अधिक पाखंड, वैषम्य और उलझनों में पड़ेंगे। प्रेम का आभाव ही हमारी कुरूपता, दिल और दिमाग की कंगाली का कारण है।

जब प्रेम और सौन्दर्य आपके मन में होता है तब आप जो भी करते हैं लयबद्ध होता है, विधिसम्मत होता है। यदि आप जानते हैं कि प्रेम कैसे करना है, तब आप कुछ भी करें यह अवश्य ही सभी समस्याओं का हल बन जाता है।