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4 Jul 2009
स्वकेन्द्रित दुःख का शोक
हम अपने से संबंधित चीजों के बारे में देखने और सोचने मंे कितना कम ध्यान देते हैं। हम अति आत्मकेन्द्रित हैं, अपनी ही चिंताओं से भरे हुए, अपने ही लाभ के लिए हमारे पास देखने और समझने का समय नहीं है। यह भरापन हमारे मन को कुंद और हमें दिल दिमाग से थका हुआ, हीनताग्रस्त और शोकपूर्ण बनाता है और शोक से हम पलायन करना चाहते हैं। जब तक हमारा ‘स्व’ सक्रिय है थकान, कुंदपना और हीनग्रस्तता होगी ही। लोग एक पागलपन की दौड़ में फंसे हुए हैं, अपनी ही आत्मकेन्द्रित दुख के शोक में। यह शोक एक गहरी विचारहीनता है। विचारवान, और देखने वाला सभी दुःखों से मुक्त होता है।
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