
20 Aug 2009
क्या आप बिना किसी मजबूरी के स्वयं को भूल सकते हैं?
क्या यह मन के लिए संभव है कि वह प्रेक्षक, दृष्टा, अनुभवकर्ता से बिना किसी उद्देश्य के मुक्त हो जाए। निश्चित ही , अगर कोई उद्देश्य होगा तो यह उद्देश्य ही अनुभवकर्ता और मैं का निचोड़ होगा। क्या आप बिना किसी मजबूरी के स्वयं को भूल सकते हैं? बिना किसी ईनाम या दंड के भय के स्वयं को भूल सकते हैं? केवल अपने को भूलना ही है, मुझे नहीं पता कि आपने कभी ऐसी कोशिश की हो। क्या कभी आपके सामने यह विचार उठा, क्या कभी आपके मन में यह बात आई। और कभी ऐसा खयाल आया भी हो, तो आप तुरन्त कहते हैं ”अगर मैं स्वयं को भूल जाऊं तो मैं इस दुनियां में केसे जिंऊगा, जहाँ हर कोई मुझे एक तरफ धकेलता हुआ आगे बढ़ना चाह रहा है।“ इस प्रश्न का सही उत्तर प्राप्त करने के लिए आपको सर्वप्रथम यह जानना होगा कि आप बिना किसी ‘मैं’ के कैसे जी सकते हैं। बिना किसी अनुभवकर्ता, बिना किसी आत्मकेन्द्रित गतिविधि के कैसे जी सकते हैं? यही मैं पन, अनुभवकर्ता होना, आत्मकेन्द्रित गतिविधियाँ दुख की सृजक हैं, भ्रम और दुर्गति का मूल हैं। तो क्या यह संभव है इस संसार में जीते हुए इसके सभी जटिल सम्बंधों, घोर दुख में जीते हुए कोई पूरी तरह उस चीज से बाहर हो जाए जो ‘मैं’ को बनाती है।

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इस ब्लॉग पर प्रस्तुत सामग्री जे कृष्णमूर्ति के अंग्रेजी भाषा में अभिव्यक्त कथनो, व्याख्यानों अथवा उनकी उक्ितयों का, सरल सुगम भाषा में अनुवादित वाक्य संकलन मात्र है, जिसे आप मूल वेबसाईट पर देख सकते हैं। जे कृष्णमूर्ति फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित/प्रसारित पुस्तकों से लिये जाने पर संबंधित पुस्तकों का विवरण संलग्न है।
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