अपने ही बारे में सीखने और जानने के लिए नम्रता की अत्यंत आवश्यकता होती है। अगर आप यह कहते हुए सीखना चाहते हैं ”कि मैं अपने को जानता हूँ“ तो वहीं पर अपने को सीखने जानने की प्रक्रिया का अंत कर रहे हैं। यदि आप यह कहते हैं कि ”मुझ में अपने बारे में सीखने जानने के लिए है ही क्या क्योंकि मैं जानता हूं कि मैं क्या हूं? - मैं यादों, संकल्पनाओं, अनुभवों, पंरपराओं और सशर्त, ढांचों में ढला अस्तित्व हूं जो अनन्त विरोधाभासी प्रतिक्रियाएं देता है, तो इस तरह भी आप अपने बारे में सीखना जानना रोक रहे हैं। अपने आप के बारे में जानने समझने के लिए भी विचारणीय विनम्रता की जरूरत होती है। तो कभी भी न सोचें कि आप कुछ जानते हैं... यहीं से अपने आपको शुरू से जाना जा सकता है और इस दौरान संग्रह प्रवृत्ति को छोड़ दें। क्योंकि जिस क्षण से आप अपने बारे में ही खोज करते हुए सूचनाओं का संग्रह आरंभ करते हैं उसी क्षण से यही ज्ञान उस खोज का आधार बन जाता है जिसे आप अपनी ही जांच या सीखना कह रहें हैं इसलिए जो भी आप सीखते जानते हैं वो उसी आधार में जुड़ना शुरू हो जाता है जो कि आप पहले से ही जानते हैं। विनम्रता मन की वह अवस्था है जिसमें संग्रह या इकट्ठा करने की प्रवृत्ति नहीं होती, जिसमें यह कभी नहीं कहा जाता कि ”मैं जानता हूं।“
7 Dec 2009
अपने ही बारे में सीखने और जानने के लिए नम्रता की अत्यंत आवश्यकता है
अपने ही बारे में सीखने और जानने के लिए नम्रता की अत्यंत आवश्यकता होती है। अगर आप यह कहते हुए सीखना चाहते हैं ”कि मैं अपने को जानता हूँ“ तो वहीं पर अपने को सीखने जानने की प्रक्रिया का अंत कर रहे हैं। यदि आप यह कहते हैं कि ”मुझ में अपने बारे में सीखने जानने के लिए है ही क्या क्योंकि मैं जानता हूं कि मैं क्या हूं? - मैं यादों, संकल्पनाओं, अनुभवों, पंरपराओं और सशर्त, ढांचों में ढला अस्तित्व हूं जो अनन्त विरोधाभासी प्रतिक्रियाएं देता है, तो इस तरह भी आप अपने बारे में सीखना जानना रोक रहे हैं। अपने आप के बारे में जानने समझने के लिए भी विचारणीय विनम्रता की जरूरत होती है। तो कभी भी न सोचें कि आप कुछ जानते हैं... यहीं से अपने आपको शुरू से जाना जा सकता है और इस दौरान संग्रह प्रवृत्ति को छोड़ दें। क्योंकि जिस क्षण से आप अपने बारे में ही खोज करते हुए सूचनाओं का संग्रह आरंभ करते हैं उसी क्षण से यही ज्ञान उस खोज का आधार बन जाता है जिसे आप अपनी ही जांच या सीखना कह रहें हैं इसलिए जो भी आप सीखते जानते हैं वो उसी आधार में जुड़ना शुरू हो जाता है जो कि आप पहले से ही जानते हैं। विनम्रता मन की वह अवस्था है जिसमें संग्रह या इकट्ठा करने की प्रवृत्ति नहीं होती, जिसमें यह कभी नहीं कहा जाता कि ”मैं जानता हूं।“