आप जानते हैं कि कैसे एक ग्रामीण व्यक्ति या किसान उस प्रतिमा को ईश्वर मान लेता है जिस पर वह कुछ फल फूल आदि चढ़ाता है। आदिम मानव बादलों के गरजने को ईश्वर का इशारा समझता था कुछ अन्य मनुष्य पेड़-पौधों प्रकृति को भगवान मानते हैं। जैसे हमारे देश में पीपल, बरगद का पूजन किया जाता है वैसे ही यूरोप में सेब और जैतून के वृक्षों की पूजा की जाती रही है। ये सब आज भी चला आ रहा है।
बहुत पुराने शहरों से लेकर अभी अभी बने शहरों तक सभी जगह मन्दिर होते हैं। मन्दिरों में मूर्तियां होती हैं जिन पर तेल, फूलों के हार, आभूषण चढ़ाकर पूजा जाता हैं। इसी तरह आप भी कोई नई कल्पना रच सकते हैं, जो कि आपके वंश की परंपरा आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि से उपजी हो और उसे आप ईश्वर कह सकते हैं। शायद आपको मालूम ना हो जिस व्यक्ति ने संसार में पहले पहल परमाणु बम गिराये थे उसने भी सोचा था कि ईश्वर उसके साथ है। हिटलर से लेकर किचनर तक सभी युद्धोन्मादी, सेना में छोटे बड़े ओहदों पर आसीन सभी नायक ईश्वर के नाम पर युद्ध करने में जरा नहीं हिचकते। तो क्या यह सब प्रतिमा, विचार और कर्मकाण्ड ईश्वर हो सकता है? या क्या ईश्वर कोई ऐसी चीज है जिसका आकलन हम अपने मन से नहीं कर सकते जो हमारी कल्पना से परे की चीज है।
ईश्वर की गूढ़ता की थाह ले पाना हमारे लिए असंभव है। ईश्वर के सत्य का अनुभव कभी कभी तब होता है जब हम पूर्णतः मौन में होते हैं, जब हमारा मन प्रक्षेपण में रत नहीं होता, जब हम अन्दर ही अन्दर खुद से ही युद्ध और संघर्ष की स्थिति में नहीं होते। जब मन निश्चल होता है शायद तब हम जान पाते हैं कि ईश्वर क्या है?
इसलिये यह बहुत महत्वपूर्ण है कि कम उम्र से ही हम ईश्वर शब्द में अटकें नहीं, ईश्वर के बारे में हमें दूसरों द्वारा जो कुछ भी बताया समझाया जाता है उसे स्वीकारें नहीं। लाखों लोग हैं जो ईश्वर के संबंध में आपको सिखाने, बताने, समझाने के लिए उत्सुक हैं परन्तु हमें यह करना है कि जो कुछ भी वो कहें हम उस सबकी जांच करें। इसी तरह कुछ ऐसे भी लोग हैं जो कहते हैं ईश्वर वगैरह कुछ नहीं होता - तो हम इन लोगों की भी ना सुनें पर बारीकी और सावधानी से हर बात की जांच पड़ताल करें। ना विश्वास करने वालों पर अंधविश्वास करें ना ईश्वर को नकारने वाले को ही मानें। जब हमारा मन विश्वास और अविश्वास दोनों से ही आजाद होता है तब मन निश्चल होता है, केवल तभी संभावना बनती है कि ईश्वर संबंधित सत्य का बोध हो सके।
इन सब पहलुओं के बारे में खुले मन से सोचने समझने की जरूरत है, इन सब के बारे में किसी व्यक्ति को कहां से शुरूआत करनी है यह सब कोई नहीं बताता।
जब आप किसी महान गुरूनुमा व्यक्ति के पास जाते हैं तो वह आपको सिद्ध करके बताने की कोशिश करेगा कि ईश्वर है, वह कई विधियां बतायेगा कि किस किस तरह से क्या क्या करने पर ... यह मंत्र जपो तो ये होगा, इस प्रकार पूजा करो तो ये होगा, इस व्रत उपवास अनुशासन का पालन करने पर यह परिणाम होगा आदि। यह सब करने के बाद भी आप पायेंगे कि जो प्राप्त होगा वह ईश्वर नहीं। आपको वही प्राप्त होगा जिस चीज को आपका मन प्रक्षेपित कर रहा है, जिस चीज की रचना मन कर रहा है, यह सब आपकी मानसिक इच्छाओं की ही एक छवि होगी पर ईश्वर कदापि नहीं।
तो ईश्वर उसके बारे में जानना समझना इतना भी सरल नहीं है। ईश्वर संबंधित बातों को जानने समझने के लिए बहुत अधिक चिंतन मनन खोजबीन की जरूरत है। पहले तो अपने आपको सारे पूर्वाग्रहों से मुक्त करना होगा। अपने आपको इस योग्य बनाना होगा कि आप स्वयं इसका पता लगा सकें, स्वयं ही इन सब बातों के पीछे के रहस्यों को जान सकें। इस कार्य में कोई दूसरा आपका आधार नहीं बन सकता, आपको अपनी सहायता स्वयं करनी होगी, स्वयं ही ईश्वर को तलाशना होगा।