जब तक कि अहं की कोई भी गतिविधि है, ध्यान संभव नहीं। यह शाब्दिक रूप से नहीं बल्कि असलियत में जानना समझना बहुत ही जरूरी है। ध्यान मन को अहं की सारी गतिविधियों, स्व, मैं मेरे की सारी गतिविधियों से खाली करने की प्रक्रिया है। यदि आप अपने अहं की गविविधियों, क्रिया-कार्य-कलापों को नहीं समझते तो आपका ध्यान आपको आत्म वंचना (खुद ही अपने को ही धोखा देना) और विक्षिप्तता की ओर ले जायेगा। तो यह जानने के लिए कि ध्यान क्या है? आपको अपन अहं के क्रिया-कार्य-कलापों-गतिविधियों को समझना होगा।
आपके अहं या स्व के पास हजारों सांसारिक संवेदनाएं, अहसास, बौद्धिक अनुभव हैं पर यह इन सब से बोर हो चुका है क्योंकि इन सबका कोई अर्थ नहीं है। वृहत, अधिक विशाल, परा शक्तियों के अनुभवों से समृद्ध करने की इच्छा भी आपके ”अहं“ का ही एक हिस्सा है।