जब मैं अपनी तुलना अन्य लोगों से नहीं करता तब मैं समझ सकता हूं कि ”मैं क्या हूं?“ जीवन भर, बचपने से.. स्कूली उम्र से लेकर हमारे मरने तक, हमें सिखाया जाता है कि हम अपनी तुलना अन्य लोगों से करें, जबकि जब भी मैं किसी से अपनी तुलना करता हूं तो मैं अपने आप को ही नष्ट कर रहा होता हूं। स्कूल में, एक साधारण स्कूल में भी जहां कई लड़के होते हैं उनमें जो कक्षा में माॅनीटर है... वह असल में क्या है? आप लड़के को नष्ट कर रहे हैं। यही सब हम जिन्दगी भर करते हैं। तो अब... क्या हम बिना तुलना किये जी सकते हैं - बिना अन्य किसी से भी तुलना किये? इसका मतलब है अब कुछ भी ऊंचा या नीचा नहीं होगा, अब ऐसा नहीं होगा कि आपकी नजर में कोई एक श्रेष्ठ हो उच्च हो और कोई एक, हीन और निकृष्ट। आप वास्तव में वही हैं, जो कि आप हैं और ”जो आप हैं“ उसे जानने के लिए यह तुलना करने का तरीका आपको छोड़ना होगा, यह प्रक्रिया अनिवार्यतः समाप्त करनी होगी। यदि मैं हमेशा अपने को किसी संत या किसी शिक्षक या किसी बिजनेसमेन, लेखक, कवि या अन्य लोगों से तुलना में रखूं, तो मेरे साथ क्या होगा? मैं क्या कर रहा हूं? मैं इनसे तुलना कर रहा हूं ... कुछ पाने के अनुक्रम में, किसी उपलब्धि की दिशा में या कुछ होने के चक्कर में और यदि मैं किसी से अपनी तुलना नहीं करता तो... तब मैं यह जानना शुरू करता हूं कि वास्तव में ”मैं क्या हूं“। मैं क्या हूं, यह जानने की शुरूआत अधिक मोहक है, ज्यादा रूचिकर है और अपने को जानना, सभी मूर्खतापूर्ण बेवकूफी भरी तुलनाओं के पार ले जाता है।