तो मन में संपूर्ण रूपांतरण तभी घटता है जब निषेधात्मक नकारात्मक सोच हो। जैसे कि मैंने पहले कहा 'सोच विचार' का आधार सदैव शब्द या प्रतीकचिन्ह होते हैं। मुझे नहीं पता कि यदि आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया हो कि एक तरह का सोचविचार या विचारणा ऐसी भी होती है जो 'शब्दों' के बिना यानि बिना शब्दों के आधार पर होती है, लेकिन वो विचारणा भी सकारात्मक शब्द जगत के आधार का ही परिणाम है। यदि मैं इसकी व्याख्या करूं, तो आप समझें कि आप हमेशा ही शब्दों के आधार पर सोचते हैं या विचारों को अभिव्यक्ति करते हैं, क्या नहीं? इसलिए शब्द और प्रतीक चिन्ह सोच—विचार के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाते हैं। यह ही हमारी सारी सोचविचार प्रक्रिया का आधार है। इन शब्दों और प्रतीकों की हमारी स्मृति से सम्बद्धता रहती है, और वो स्मृति भी एक छवि है, एक शब्द है, जिस बिंदु से हम सोचना शुरू करते हैं, जारी रखते हैं... बार बार शब्दों और प्रतीकों का सहारा लेते हुए। यह सब हम जानते हैं, और यदि आप कभी बड़े सावधान—सतर्क या जागरूक रहे हों तो आपने देखा होगा कि एक ऐसी तरह की सोच—विचारणा भी होती है, जो शब्दों के बिना होती है, प्रतीकों के बिना होती है। मैं आपको इसका कोई उदाहरण नहीं देने जा रहा क्योंकि तब आप उसी उदाहरण में खो या भटक जाएंगे।

लेकिन आप कृपया इस बात का महत्व समझें कि नकारात्मक या निगेटिव थिकिंग उन सोच विचारणा से सबंधित नहीं है जिसमें विचार—शब्दों—से संबद्ध, शब्दों के आधार पर कार्यरत होते हैं। यदि आप इस बात को नहीं देख समझ पाते तो आगे जो भी कहा जा रहा है आपको समझ ना आएगा। ये जो मैं आपसे ऊंची आवाज में कह रहा हूॅं, इसकी तैयारी मैं घर पर बैठकर नहीं की और मैं इसे घर से तैयार करके नहीं लाया हूॅं। तो कृपया देखें मौखिक शाब्दिक रूप् से ही, किसी कल्पना में या अव्यावहारिक रूप् से नहीं बल्कि वास्तविक रूप से अनुभव करें कि विचार शब्दों और प्रतीकों के आधार पर काम करते हैं और यही विचार बिना शब्द और प्रतीकों के भी काम करते हैं लेकिन दोनों ही दशाएं सोचने विचारने का, विचारणा का सकारात्मक ढंग है, क्योंकि दोनों ही दशाओं में इसका कार्यक्षेत्र वही विपरीतों में जाकर टिका हुआ द्वंद्वंपूर्ण मन होता है।

लेकिन आप कृपया इस बात का महत्व समझें कि नकारात्मक या निगेटिव थिकिंग उन सोच विचारणा से सबंधित नहीं है जिसमें विचार—शब्दों—से संबद्ध, शब्दों के आधार पर कार्यरत होते हैं। यदि आप इस बात को नहीं देख समझ पाते तो आगे जो भी कहा जा रहा है आपको समझ ना आएगा। ये जो मैं आपसे ऊंची आवाज में कह रहा हूॅं, इसकी तैयारी मैं घर पर बैठकर नहीं की और मैं इसे घर से तैयार करके नहीं लाया हूॅं। तो कृपया देखें मौखिक शाब्दिक रूप् से ही, किसी कल्पना में या अव्यावहारिक रूप् से नहीं बल्कि वास्तविक रूप से अनुभव करें कि विचार शब्दों और प्रतीकों के आधार पर काम करते हैं और यही विचार बिना शब्द और प्रतीकों के भी काम करते हैं लेकिन दोनों ही दशाएं सोचने विचारने का, विचारणा का सकारात्मक ढंग है, क्योंकि दोनों ही दशाओं में इसका कार्यक्षेत्र वही विपरीतों में जाकर टिका हुआ द्वंद्वंपूर्ण मन होता है।